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पर्षि॑ दी॒ने ग॑भी॒र आँ उग्र॑पुत्रे॒ जिघां॑सतः । माकि॑स्तो॒कस्य॑ नो रिषत् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

parṣi dīne gabhīra ām̐ ugraputre jighāṁsataḥ | mākis tokasya no riṣat ||

पद पाठ

पर्षि॑ । दी॒ने । ग॒भी॒रे । आ । उग्र॑ऽपुत्रे । जिघां॑सतः । माकिः॑ । तो॒कस्य॑ । नः॒ । रि॒ष॒त् ॥ ८.६७.११

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:67» मन्त्र:11 | अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:53» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:7» मन्त्र:11


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यों ! (नः) हम लोगों को (सेतुः) पापरूप बन्धन दृढ़ता से (नः+सिषेत्) न बाँधे, वैसा वर्ताव रखना चाहिये। (अयम्) यह न्यायाधीश जगदीश (नः) हम लोगों को (महे) पुण्यकार्य्य के लिये (परि+वृणक्तु) छोड़ देवे, (हि) क्योंकि (इन्द्रः+इत्) यही परमेश्वर (श्रुतः) विख्यात (वशी) वशी है अर्थात् सम्पूर्ण जगत् को अपने वश में रखनेवाला है ॥८॥
भावार्थभाषाः - हम लोगों को सदा शुभकर्म के सेवन में रहना चाहिये, जिससे ईश्वरीय दण्ड हम पर न गिरे। हमारा सम्पूर्ण जीवन प्राणिहित हो ॥८॥
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! सेतुः=पापबन्धनम्। नः=अस्मान्। यथा मा सिषेत् न दृढतरं बध्नीयात्। तथास्माभिर्वर्तितव्यम्। अयं परमात्मा। महे=पुण्याय कार्य्याय। नोऽस्मान्। परि+वृणक्तु=परित्यजतु। हि=यतः। इन्द्र+इत्=ईश्वर एव। श्रुते वशी=सर्वस्य वशीकर्तास्ति ॥८॥